एक पेड़ पर दो बाज प्रेमपूर्वक
रहते थे दोनों शिकार की तलाश में निकलते और जो भी पकड़कर लाते उसे शाम को मिल बाँट कर खाते |बहुत दिन से उनका यही क्रम चल रहा था |
एक दिन दोनों शिकार पकड़कर लौटे तो एक चोंच में चूहा था और दूसरी चोंच में साँप | शिकार दोनों हम तब तक जीवित थे | पेड़ पर बैठकर बाजो ने जब उनकी पकड़ ढीली कीतो साँप ने चूहे कोदेखा और चूहे ने साँप को |
साँप चूहे का स्वादिष्ट भोजन पाने के लिए जीभ लपकाने लगा और चूहा साँप के प्रयत्नों को देखकर अपने पकड़ने वाले बाज के डैनो में छिपने का उपक्रम करने लगा |
उस दृश्य को देखकर एक बाज गंभीर हो गया और विचार मग्न दिखने लगा , दुसरे ने उससे पूछा -दोस्त दार्शनिको की तरह किस चिंतन -मनन में डूब गये?
पहले बाज ने अपने पकड़े हुए साँप की ओर संकेत करते हुए खा कि देखते नही यह कैसा मुर्ख प्राणी है |जीभ को लिप्सा के कारण यह मौत का भी विस्मरण कर रहा है |
दुसरे बाज ने अपने चूहे की आलोचना करते हुए कहा- और इस नासमझ को भी देखो भय इसे प्रत्यक्ष मौत से भी अधिक डरावना लगता है |
पेड़ के नीचे एक मुसाफिर सुस्ता रहा था |उसने दोनों की बाते सुनी और एक लम्बी साँस छोड़ते हुए बोला - हम मानव प्राणी भी साँप और चूहे की तरह स्वाद और भय को बड़ा समझते है , मौत तो हमें विस्मरण रहती है |