बांवरा मन खुद अपनी चंचलता से है अनजान,
ऊंचाइयां इतनी छूनाचाहे,की नीचा लगने लगता आसमान,
समझ कर भी,न समझना चाहे,यह मन
कभी-कभी भूले हुए को भी,भुला न पाए
तो कभी याद आने वाले,याद न आएं
मन की माया,मन ही जाने
कभी बेगाने लगते अपने,
तो कभी अपने बन जाएं बेगाने|