रास्ते के पत्थर की तरह,
वो रास्ते की ठोकरें खा रहा,
जानवर से बदतर जीवन जीकर,
वो न जाने क्यों इंसान कहला रहा,
तन पर वस्त्र हैं,पर उसका उपहास बना रहे,
चेहरे की अनगिनत लकीरें मानों,
वक़्त के उतार-चड़ाव दिखा रहे,
धूल-मिटटी से सना हुआ उसका तन,
दूसरों की घृणा से आहत उसका मन,
रास्ते के पत्थर की तरह..........