कुछ रिश्ते न चलते हैं,आगे
कुछ रिश्ते न बढते हैं,आगे
बस बदलता है,उनका रुख
बस बदलती हैं,उनकी संवेदनाएं,
मन को आहत करने लगतीं हैं,
उनकी बदलती दिशाएँ,
न जाने क्यों,कभी-कभी
सपने बुनने लगता है मन,किसी बेगाने के साथ,
तो,क्यों कोई अपना होकर भी,अपना लगता नहीं,
सपने बुनने लगता है मन,किसी बेगाने के साथ,
तो,क्यों कोई अपना होकर भी,अपना लगता नहीं,
दिल खुद को कोसता है,तो कभी वक़्त को,जो बदलता ही नहीं|