मैं मूर्ख सा इंसान,तुझको मैं न सका पहचान,
मेरी समझ में कुछ न आये,तू कैसे बंसी बजाये,
ग्वालों संग गैयाँ चराए कभी
गोपिन संग रास रचाए कभी
बंसी कि तान सुनाये कभी
गीता का ज्ञान कराये कभी
मैं फिर भी न सका जान,कान्हा तू ही है भगवान्,
मेरी कुछ समझ न आये,तू कैसे बंसी बजाये|