लबों पर खामोशी थी,
पर उसकी बेवफा नज़रों का,
कोई कुसूर न था,
उसकी आँखों में नमी थी,
पर उसकी रुसवाइयों का,
कोई दोष न था,
उसका दिल आहत था,
पर उसकी बदनसीबी को,
खुद अपना होश कहाँ था|
पर उसकी बेवफा नज़रों का,
कोई कुसूर न था,
उसकी आँखों में नमी थी,
पर उसकी रुसवाइयों का,
कोई दोष न था,
उसका दिल आहत था,
पर उसकी बदनसीबी को,
खुद अपना होश कहाँ था|