वक्त के हाथों की,
कठपुतली है इंसान,
फिर भी,
मद,लोभ,माया में उलझा,
क्यों भटक रहा इंसान,
तजो मन,हरि विमुखन को संग,
जिनके संग कुमति उपजत है,
पडत,भजन में भंग|
कठपुतली है इंसान,
फिर भी,
मद,लोभ,माया में उलझा,
क्यों भटक रहा इंसान,
तजो मन,हरि विमुखन को संग,
जिनके संग कुमति उपजत है,
पडत,भजन में भंग|