क्यों आवाज़ नहीं होती,
सूरज के उगने की,
चाँद के छुपने की,
तारों के टिमटिमाने की,
किसी को दिल से चाहने की,
फिर दर्दे-दिल बढ जाने की,
किसी की तरफ मुस्कुराने की,
रिश्तों में कडवाहट आने की,
फिर दिल के चुपके-चुपके रोने की,
हाय,क्यों आवाज़ नहीं होती,
अपनों की बेरुखी से,
दिल के हज़ार टुकड़ों में बिखर जाने की|