बच्चे ऊँगली पकड़कर चलना सीखतें हैं,
माँ-बाप की,
बड़े होकर दुःख से भर देतें हैं,झोली उन्ही,
माँ-बाप की,
अलग सपने,अलग सोच,अलग होते हैं,
अरमान उनके,
उन्हें पता ही नहीं चलता,कितने आंसू भर देतें हैं,
आँखों में उनके,
नन्हे पौधे भी वृक्ष बनकर,देते हैं,छाया अपनी,
पर औलाद तो,करती है,हरपाल मनमानी अपनी,
और दिन-रात रौंदती है,सपने उनके,
भगवान से दुआएं मांगतें थकते नहीं,हाथ जिनके|
माँ-बाप की,
बड़े होकर दुःख से भर देतें हैं,झोली उन्ही,
माँ-बाप की,
अलग सपने,अलग सोच,अलग होते हैं,
अरमान उनके,
उन्हें पता ही नहीं चलता,कितने आंसू भर देतें हैं,
आँखों में उनके,
नन्हे पौधे भी वृक्ष बनकर,देते हैं,छाया अपनी,
पर औलाद तो,करती है,हरपाल मनमानी अपनी,
और दिन-रात रौंदती है,सपने उनके,
भगवान से दुआएं मांगतें थकते नहीं,हाथ जिनके|