जीवन की संध्या होने को है,
न लोभ गया,न तृष्णा गई,
अब तो जागो,ऐ इंसान
तभी तो होगी एक भोर नई,
मोह-माया ने ऐसा अपना ज़ाल बिछाया,
चाहकर भी,कोई इसमें फंसने से खुद को रोक न पाया,
संगी-साथी पास हैं,जो अब तक तेरे,
होगें दूर सभी,जब घेरेंगीं तुझे मौत की लहरें|