जीवन की संध्या होने को है,
न लोभ गया,न तृष्णा गई,
अब तो जागो,ऐ इंसान
तभी तो होगी एक भोर नई,
मोह-माया ने ऐसा अपना ज़ाल बिछाया,
चाहकर भी,कोई इसमें फंसने से खुद को रोक न पाया,
संगी-साथी पास हैं,जो अब तक तेरे,
होगें दूर सभी,जब घेरेंगीं तुझे मौत की लहरें|
1 comment:
bilkul sach big sis, I miss u alot.
little sis
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