फकीर देखा एक,
मस्तमलंग,न अपना होश उसे,
न फिक्र,दीन-दुनिया की उसे,
धरती बिछौना उसका,
नीलगगन चादर उसकी,
उसे जीवन से कुछ मिला नहीं,
पर,उसे जीवन से कुछ गिला नहीं,
उसका ख़ुशी भरा गीत सुनकर,मन हो गयाप्रसन्न,
कुछ न होते हुए भी,सबको जीना सिखा रहा था वो,
खुश रहकर,प्रेम और शान्ति से जीने की कला सिखा रहा था वो|