वो नन्हे-नन्हे से पंखोंवाली तितली,
कैसे धरती पर निढाल सी पड़ी थी,
शायद इस अवस्था में आने से पहले,
वो यथाशक्ति से अधिक लड़ी थी,
याद आता है,उसका चमन में विचरना,
हर कली,हर फूल से घंटों बतियाना,
शोख रंगों वाली उस नन्ही सी जान का,
अपनी ही अदाओं पर,खुद ही इतराना,
मस्ती से उसका,मुस्कुराना और गुनगुनाना |