न जाने क्यों,
तनाव में है,हर शख्स यहाँ,
प्रेम की इक बूँद को तरस हर बशर यहाँ,
गलतफहमियों में उलझकर,बस रह गया हर इंसान,
अपने सीने में,दबाकर जी रहा,कितने तूफ़ान,हर इंसान,
अब तो खुली हवा में भी दम घुटने लगा है,
अपनी ही साँसें,बोझिल लगनें लगीं हैं,
हर रिश्ता,जैसे अपने ही बोझ से दब रहा है|
1 comment:
बहुत सुन्दर!
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