जो टपक रहा था,उसकी आँखों से अविरल
वो कोई मौन भाषा थी,
कोई असहनीय दर्द,जो सहना पड़ा था,
उसे अकेले ही,
कोई आशा थी मन में,जो अचानक बदल
गई निराशा में,
न जाने कब जीवन के उजाले बदल गए,
घोर अंधेरों में,
न जाने कितने एहसास दब कर रह गए,
उन आंसूं भरी आँखों में|
वो कोई मौन भाषा थी,
कोई असहनीय दर्द,जो सहना पड़ा था,
उसे अकेले ही,
कोई आशा थी मन में,जो अचानक बदल
गई निराशा में,
न जाने कब जीवन के उजाले बदल गए,
घोर अंधेरों में,
न जाने कितने एहसास दब कर रह गए,
उन आंसूं भरी आँखों में|
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