जब दर्द चुपके-चुपके आने लगता है,
रिश्तों में नज़र,कभी-कभी बिन बात के,
जैसे माइने ही बदलने लगते हैं,
कभी-कभी हर जज़्बात के,
क्यों हर सीधी बात का मतलब समझ आता नहीं,
जो कल तक अच्छा लगता था,आज भाता नही,
रंग-बिरंगे फूलों के रंग फीके लगतें हैं,सभी
चाँद-तारे भी दूर ही भले लगतें हैं,सभी
जब दर्द चुपके-चुपके......
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sunder rachna dhanyabad
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