उजाले कहाँ हैं,पूछते हैं
अंधेरों में घिरे हैं जो,
किनारे कहाँ हैं,पूछते है,
मझधार में फंसे हैं जो,
सपनों की दुनिया कहाँ हैं,पूछते हैं,
कड़वी हकीक़त से टकराकर बिखर चुकें हैं जो,
बहार कहाँ है,रोकर पूछता है,
पतझड़,सूना-सूना सा लगता है जो,
अक्सर,कोई अपना ढूँढता है,दिल
अजनबियों की दुनिया में,खो गया है जो|
1 comment:
बहुत ही खूबसूरत रचना ।
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