इंसानी रिश्तों का अजब सा मायाजाल देखा,
प्रेम-प्यार के नाम पर,हर तरफ छलावा देखा,
गिले-शिकवे एक दूसरे से करते,थकते नहीं लोग,
इंसान तो क्या,भगवान् के नाम पर भी ठगते हैं लोग,
न जाने क्यों,सुख-शान्ति भूलकर,
लड़ने-झगड़ने को तुला है हर इंसान,
मद और क्रोध के वश में होकर,भटक रहा हर इंसान|
2 comments:
बहुत सुन्दर भाव हैं रचना के....बधाई स्वीकारें।
very nice & expressive!
little sis
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