एक व्यक्ति बारह वर्ष तक काशी में पढ़ कर आया|पत्नी ने उसके स्नान के लिए गर्म पानी तैयार किया|जब वह स्नानगृह में गई तो उसने देखा,की वहां हज़ारों चींटियाँ रेंग रही थी|चींटियाँ कहीं बेमौत न मर जाएं,यह सोचकर उसने नहाने कोई बर्तन दूसरे स्थान पर रख दिया|पति ने पूछा-"नहाने के स्थान पर बर्तन क्यों नहीं रखा?"
पत्नी बोली-"वहाँ बहुत चींटियाँ घूम रही थी,इसलिए दूसरे स्थान पर रख दिया|"पति बोला-"तुम पढ़ी-लिखी हो ,पर बात मूर्खता की करती हो|क्या हम उन चींटियों के पालनहार हैं?हम किस-किस की चिंता करेंगे?"
पत्नी ने कहा-"बारह वर्ष तक आपने विद्या-अध्ययन किया,उस विद्या का क्या लाभ,जिससे इतनी भी समझ न आई की दूसरों को पीड़ा नहीं पहुंचानी चाहिए|यह विद्या नहीं,कोरा भूसा है|"
यह सुनकर पतिको अपनी कमी का अहसास हुआ और उसने अपनी गलती के लिए अपनी पत्नी से क्षमा मांगी|
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