जीवन के अंतिम श्वास तक,
भला सब का सोचूँ और करूँ,
पाया नरजन्म,मुश्किल से
क्यों इसे निज्स्वार्थ में व्यर्थ करूँ,
अपनी मुट्ठी में भर के,सूर्य की रोशनी को,
क्यों न मैं निकलूँ,अँधेरे मिटाने को,
मनोबल और बुद्धि से,
क्यों न संशय दूर करूं,भटके हुए इंसानों के,
हे प्रभु,वरदान इतना देना,
बिना डगमगाए दृड़ विश्वास से,मैं पर-पीड़ा
को महसूस कर,उसे दूर करने की चेष्टा सदा करूँ|
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