न जाने क्यों,
भाग रहें हम जिंदगी के पीछे,
न जाने क्यों,
भटक रहें है हम,अतृप्त इच्छाओं के लिए,
शायद इस भाग-दौड़ में,कुछ सुकून keपल भी न निकाल पाए अपने लिए,
कुछ खुशनसीब भी है,जिन्हें नसीब हुए सुकून के कुछ पल,
जो अपने से परे हटकर,कुछ कर पाए दूसरों के लिए|
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