क्यों परेशान है,हर इंसान यहाँ,
क्यों बेचैन है,हर शख्स यहाँ,
हर वक़्त,गिले-शिकवे हैं,दूसरों से,
जो भी उम्मीदें है,वो भी दूसरों से,
बुराई तो नजर आती है,इंसान को
पर दूसरों की,
मुसीबतें और परेशानियां भी आतीं हैं नज़र,
पर सिर्फ अपनी ही,
कैसा शिकंजा है यह ,जिसमें फँस रहा है,इंसान
कैसा शिकंजा है यह,जिसे खुद बुन रहा है,इंसान|
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