द्रवित हो गया मन,देखकर उस
मासूम पर होता जुल्मो-सितम,
उसके आँखों से बहते आंसूओं को,देखकर
हुआ,लुप्त होती मानवता का अहसास,मुझे आज,
घर-घर में हो रहा,अन्याय और अत्याचार का राज,
क्यों,कुछ इंसानों पर इंसानियत से अधिक
हैवानियत हावी होती जा रही है,
क्यों कुछ,मासूमों की जिंदगी अपनी
चमक खोती जा रही है,
हे प्रभु-ईश्वर ,जगा दो जमीर उनका,
प्रेम और दया से,विहीन हो चुका है हृदय जिनका|
No comments:
Post a Comment