जलता है दिया जीवन का,
जब तक तेल डाल रहा है वो,
बुझ जाएगा,एक ही पल में
उस मालिक के एक इशारे पर,
मोह,माया,लोभ में फंसकर व्यर्थ इतरा रहा इंसान,
अपने ही बनाए हुए ताने-बाने में,उलझा रहा नादान,
अपना चैन खोकर,स्वयं के हित से अनजान रहा इंसान,
ढूँढ रहा है क्या,ये समझ के भी न समझ सका,राह से भटका हुआ इंसान|
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