ठण्ड पड़ रही है कड़ाके की,
कोहरे की घनी चादर से लिपटी है धरती,
बर्फ ने ढक रखा है,पर्वतों को,
हर मनुष्य मांग रहा पनाह इस सर्दी से,
मौसम के मिजाज़ का बदलने का इंतज़ार है,
हर किसी को,
जैसे किसी प्यासे को सावन का हो इंतज़ार,
थोड़ी सी धूप या कृपा सूर्यदेव की, राहतदे सकती है,
हर किसी को|
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