मन भागता फिरता है,दूर गगन की छाँव में,
उसे शांत कैसे करू,उसे कैसे समझाऊँ मैं,
तारों की चमक देखकर,मेरे मन में जागी है ललक,
दूर आसमान में कहीं,मैं भी एक चमकता तारा बन जाऊं,
परन्तु,
इस चंचल,दीवाने मन को कैसे समझाऊँ,
जीने का राज़,मैं उसे कैसे बताऊँ|
1 comment:
Good One!
Love from little sis
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