जल कहो,नीर या पानी,
है हर रूप में सुखदाई,
प्यासे की प्यास हरता है,सींचकर
पेड़-पौधों को नव-जीवन देता है,
बादल के रूप में बरसकर,धरती की
तपिश कम करता है,
बोझिल आँखों से बरसकर,मन का
दुःख-दर्द मिटाता है,
तीर्थ जल बनकर,साधक के तन-मन को
पावन करता है,
जल कहो,नीर या........
1 comment:
nice....
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