रिश्ते कैसे उलझा देते है इन्सान को,
खुद से पनाह मांगने लगता है वो,
न निभा पाता है,न भाग पाता है
रिश्तों से दूर कहीं वो,
न जी पाता है ,न मर पाता है
बस रिश्तों के जंजाल में ,
घुट कर रह जाता वो,
न जिंदगी भर हंस पाता है,
न खुलकर रो ही पाता है वो,
न किसी से कुछ कह पाता है,
बस मन ही मन छटपटाता है वो|
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