दो आँखों में ,न जाने कैसे समां जाता है ,
सारा जहां,
कभी खुशियाँ झलकती हैं,आँखों से
तो कभी,ग़मों से बोझिल होकर आँखें
टप-टप बरसती हैं,
कभी न चाहते हुए भी,बहुत कुछ कहती हैं ये आँखें,
जहां कहना होताहै बहुतकुछ,वहाँ खामोश रहती हैं ये आँखें,
बहुत से सपनों को पनाह देती हैं ,यह आँखें,
फिर उन्हीं सपनों के पूरा होने की आस देखती है,ये आँखें|
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