बचपन में कहानियाँ सुनकर ,नींद बहुत प्यारी
आती थी ,
कभी परियों की,तो कभी राक्षसों और जानवरों की,
अब तो बदल चुका है ,सब कुछ,
लुप्त हो गई परियां ,नाच रहे सब ओर, राक्षस और जानवर,
बेबस हो गया ,है जन मानस
सहमे सहमे से है कदम,अपराध का है बोलबाला हर तरफ़
आती थी ,
कभी परियों की,तो कभी राक्षसों और जानवरों की,
अब तो बदल चुका है ,सब कुछ,
लुप्त हो गई परियां ,नाच रहे सब ओर, राक्षस और जानवर,
बेबस हो गया ,है जन मानस
सहमे सहमे से है कदम,अपराध का है बोलबाला हर तरफ़
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