कभी-कभी बिन बात के
नाचने लगता है मन,
कभी-कभी बिन बात के
उदास रहने लगता है मन,
शीतल चांदनी भी सुकून नहीं देती,
और,
चुभती धूप से खिलने लगता है,तन-मन,
दूर लगता है हर अपना,
टूटा-टूटा सा हर सपना,
लगता है,गैरों से हमारी उमीदें बंधीं हैं,
लगता है,हमारी खुशियों की डोर है,कहीं और|
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